भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बात कुछ नहीं समझाता मुझे आइना हर रोज़ / रमेश तन्हा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तन्हा |अनुवादक= |संग्रह=तीसर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:34, 13 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
बात कुछ नहीं समझाता मुझे आइना हर रोज़
बात उसकी मगर मैंने भी मानी तो नहीं है
हर ज़ाविये से चेहरा दिखा कर नया हर रोज़
बात कुछ नहीं समझाता मुझे आइना हर रोज़
कहता है ज़बूं हाल सुना कर मिरा हर रोज़
तू अपना कोई दुश्मने-जानी तो नहीं है
बात कुछ नहीं समझाता मुझे आइना हर रोज़
बात उसकी मगर मैंने भी मानी तो नहीं है।