भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सूरज की तमाज़त को तो सब देखते हैं / रमेश तन्हा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तन्हा |अनुवादक= |संग्रह=तीसर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:44, 7 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण
सूरज की तमाज़त को तो सब देखते हैं
क्या उसकी हक़ीक़त है ये कब देखते हैं
रह जाती हैं आंखें खीरा होकर
आईना कभी धूप में जब देखते हैं।