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अहसास हुआ है वही जामिद बे-कैफ़
उस पर भी फ़ज़ा है वही जामिद बे-कैफ़
फिर ज़र्द हुआ जाता है बर्गे-तख़लीक़
फिर आज नवा है वही जामिद बे-क़ैफ़।