भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अपनी ही तरक़्क़ी से मिटा जाता है / रमेश तन्हा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तन्हा |अनुवादक= |संग्रह=तीसर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:59, 7 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण

 
अपनी ही तरक़्क़ी से मिटा जाता है।
अपने ही लिए खदशा बना जाता है
हर शख्स कि औरों को मिटाने के लिये
अपना ही शिकार आप हुआ जाता है।