भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ऐ मौजे-सबा मुझको यूँ ही रहने दे / रमेश तन्हा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तन्हा |अनुवादक= |संग्रह=तीसर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:15, 7 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण
ऐ मौजे-सबा मुझको यूँ ही रहने दे
मत छोड़ ख़यालों में यूँ ही बहने दे
जाती है तो पैग़ाम ही, चल लेती जा
जो कह न सका आज वो सब कहने दे।