भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सरकश का सर गोड़ के रख देती है / रमेश तन्हा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तन्हा |अनुवादक= |संग्रह=तीसर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:29, 7 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण
सरकश का सर गोड़ के रख देती है
परवाज़ के पर तोड़ के रख देती है
तोता-चश्मी, वो भी खास अपनों की
अहसास को झंझोड़ के रख देती है।