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"इश्क़ का राग जो गाना हो मैं उर्दू बोलूं / अजय सहाब" के अवतरणों में अंतर
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किसी रूठे को मनाना हो ,मैं उर्दू बोलूं | किसी रूठे को मनाना हो ,मैं उर्दू बोलूं | ||
− | किसी मुरझाते हुए बाग़ में ग़ज़लें पढ़कर | + | किसी मुरझाते हुए बाग़ में ग़ज़लें पढ़कर |
जब मुझे फूल खिलाना हो ,मैं उर्दू बोलूं | जब मुझे फूल खिलाना हो ,मैं उर्दू बोलूं | ||
− | इसकी खुशबू से चला आएगा खिंचकर कोई | + | इसकी खुशबू से चला आएगा खिंचकर कोई |
जब उसे पास बुलाना हो ,मैं उर्दू बोलूं | जब उसे पास बुलाना हो ,मैं उर्दू बोलूं | ||
− | + | बात नफ़रत की हो करनी तो ज़बानें हैं कई | |
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जब मुझे प्यार जताना हो ,मैं उर्दू बोलूं | जब मुझे प्यार जताना हो ,मैं उर्दू बोलूं | ||
− | + | बर्फ़ सी ठंडी फ़ज़ाओं में भी लफ़्ज़ों से 'सहाब' | |
− | + | आग के फूल खिलाना हो ,मैं उर्दू बोलूं | |
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12:48, 14 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण
इश्क़ का राग जो गाना हो मैं उर्दू बोलूं
किसी रूठे को मनाना हो ,मैं उर्दू बोलूं
किसी मुरझाते हुए बाग़ में ग़ज़लें पढ़कर
जब मुझे फूल खिलाना हो ,मैं उर्दू बोलूं
इसकी खुशबू से चला आएगा खिंचकर कोई
जब उसे पास बुलाना हो ,मैं उर्दू बोलूं
बात नफ़रत की हो करनी तो ज़बानें हैं कई
जब मुझे प्यार जताना हो ,मैं उर्दू बोलूं
बर्फ़ सी ठंडी फ़ज़ाओं में भी लफ़्ज़ों से 'सहाब'
आग के फूल खिलाना हो ,मैं उर्दू बोलूं