भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रोशनी / अनिल करमेले" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल करमेले |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
+ | {{KKVID|v=TmP-2qfRSvY}} | ||
<poem> | <poem> | ||
बार-बार लौटा हूँ उस दर से | बार-बार लौटा हूँ उस दर से |
19:20, 24 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
बार-बार लौटा हूँ उस दर से
जहॉँ मुझे नहीं जाना चाहिए था
वहाँं कभी पहुँच नहीं पाया
जहाँ मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी
उन रास्तों पर अक्सर चलता चला गया
जहाँ चलते रहने के अलावा कुछ भी नहीं था
जिनसे किसी ठिकाने पर पहुँचा जा सकता था
वे रास्ते मेरी नज़रों से हरदम ओझल रहे
जिनके साथ नहीं होना चाहिए था मुझे पल भर
वे मेरे दिन-रात के साथी रहे
जो पुकारते रहे मुझको
और अपने जीवन में मेरे लिए जगह बनाते रहे
मैंने कभी नहीं सुनी उनकी प्रार्थना
मेरे सामने चकाचौंध रोशनी थी
जो मेरे पीछे के अँधेरों से जीवन ले रही थी
जब मेरी आँखें
अपने पीछे का अँधेरा पहचानने लायक हुईं
मेरे सामने की रोशनी ख़त्म हो गई थी।