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"आत्मकथा / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
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किसी को टूट के चाहा, किसी से खिंच के रहे | किसी को टूट के चाहा, किसी से खिंच के रहे |
18:16, 11 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण
किसी को टूट के चाहा, किसी से खिंच के रहे
दुखों की राहतें झेलीं, खुशी के दर्द सहे
कभी बगूला से भटके
कभी नदीं से बहे
कहीं अँधेरा, कहीं रोशनी, कहीं साया
तरह-तरह के फ़रेबों का जाल फैलाया
पहाड़ सख्त था, वर्षों में रेत हो पाया।