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"सफ़र को जब भी / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

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सफ़र को जब भी किसी
 
सफ़र को जब भी किसी
 
 
दास्तान में रखना
 
दास्तान में रखना
 
 
क़दम यकीन में, मंज़िल
 
क़दम यकीन में, मंज़िल
 
 
गुमान में रखना |
 
गुमान में रखना |
 
  
 
जो सात है वही घर का
 
जो सात है वही घर का
 
 
नसीब है लेकिन
 
नसीब है लेकिन
 
 
जो खो गया उसे भी
 
जो खो गया उसे भी
 
 
मकान में रखना |
 
मकान में रखना |
 
  
 
जो देखती हैं निगाहें
 
जो देखती हैं निगाहें
 
 
वही नहीं सब कुछ
 
वही नहीं सब कुछ
 
 
ये एहतियात भी अपने
 
ये एहतियात भी अपने
 
 
बयान में रखना |
 
बयान में रखना |
 
  
 
वो ख्वाब जो चेहरा
 
वो ख्वाब जो चेहरा
 
 
कभी नहीं बनता
 
कभी नहीं बनता
 
 
बना के चाँद उसे
 
बना के चाँद उसे
 
 
आसमान में रखना |
 
आसमान में रखना |
 
  
 
चमकते चाँद-सितारों का
 
चमकते चाँद-सितारों का
 
 
क्या भरोसा है
 
क्या भरोसा है
 
 
ज़मीं की धुल भी अपनी
 
ज़मीं की धुल भी अपनी
 
 
उड़ान में रखना |
 
उड़ान में रखना |
 
  
 
सवाल तो बिना मेहनत के
 
सवाल तो बिना मेहनत के
 
 
हल नहीं होते
 
हल नहीं होते
 
 
नसीब को भी मगर
 
नसीब को भी मगर
 
 
इम्तहान में रखना |
 
इम्तहान में रखना |
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18:59, 11 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

सफ़र को जब भी किसी
दास्तान में रखना
क़दम यकीन में, मंज़िल
गुमान में रखना |

जो सात है वही घर का
नसीब है लेकिन
जो खो गया उसे भी
मकान में रखना |

जो देखती हैं निगाहें
वही नहीं सब कुछ
ये एहतियात भी अपने
बयान में रखना |

वो ख्वाब जो चेहरा
कभी नहीं बनता
बना के चाँद उसे
आसमान में रखना |

चमकते चाँद-सितारों का
क्या भरोसा है
ज़मीं की धुल भी अपनी
उड़ान में रखना |

सवाल तो बिना मेहनत के
हल नहीं होते
नसीब को भी मगर
इम्तहान में रखना |