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"दिल सलीके से उगा / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
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दिन सलीके से उगा | दिन सलीके से उगा | ||
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रात ठिकाने से रही | रात ठिकाने से रही | ||
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दोस्ती अपनी भी कुछ | दोस्ती अपनी भी कुछ | ||
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रोज़ ज़माने से रही | | रोज़ ज़माने से रही | | ||
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चंद लम्हों को ही बनती हैं | चंद लम्हों को ही बनती हैं | ||
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मुसव्विर आँखें | मुसव्विर आँखें | ||
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ज़िन्दगी रोज़ तो | ज़िन्दगी रोज़ तो | ||
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तसवीर बनाने से रही | | तसवीर बनाने से रही | | ||
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इस अँधेरे में तो | इस अँधेरे में तो | ||
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ठोकर ही उजाला देगी | ठोकर ही उजाला देगी | ||
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रात जंगल में कोई शमअ | रात जंगल में कोई शमअ | ||
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जलाने से रही | | जलाने से रही | | ||
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फ़ासला, चाँद बना देता है | फ़ासला, चाँद बना देता है | ||
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हर पत्थर को | हर पत्थर को | ||
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दूर की रौशनी नज़दीक तो | दूर की रौशनी नज़दीक तो | ||
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आने से रही | | आने से रही | | ||
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शहर में सबको कहाँ मिलती है | शहर में सबको कहाँ मिलती है | ||
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रोने की जगह | रोने की जगह | ||
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अपनी इज्जत भी यहाँ | अपनी इज्जत भी यहाँ | ||
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हँसने-हँसाने में रही | | हँसने-हँसाने में रही | | ||
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19:04, 11 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण
दिन सलीके से उगा
रात ठिकाने से रही
दोस्ती अपनी भी कुछ
रोज़ ज़माने से रही |
चंद लम्हों को ही बनती हैं
मुसव्विर आँखें
ज़िन्दगी रोज़ तो
तसवीर बनाने से रही |
इस अँधेरे में तो
ठोकर ही उजाला देगी
रात जंगल में कोई शमअ
जलाने से रही |
फ़ासला, चाँद बना देता है
हर पत्थर को
दूर की रौशनी नज़दीक तो
आने से रही |
शहर में सबको कहाँ मिलती है
रोने की जगह
अपनी इज्जत भी यहाँ
हँसने-हँसाने में रही |