भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इस सुकूते ‍फ़िज़ा में खो जाएं / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}  
 
}}  
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
{{KKAnthologyRaat}}
 
{{KKAnthologyZindagi}}
 
{{KKAnthologyHaal}}
 
 
<poem>   
 
<poem>   
 
इस सुकूते-फ़िज़ा<ref>मौसम का मौन</ref> में खो जाएं
 
इस सुकूते-फ़िज़ा<ref>मौसम का मौन</ref> में खो जाएं

23:09, 24 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

  
इस सुकूते-फ़िज़ा<ref>मौसम का मौन</ref> में खो जाएं
आसमानों के राज़ हो जाएं

हाल सबका जुदा-जुदा ही सही
किस पे हँस जाएं किस पे रो जाएं

राह में आने वाली नस्लों के
ख़ैर कांटे तो हम न बो जाएं

ज़िन्दगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त
सोच लें और उदास हो जाएं

रात आयी 'फ़ि‍राक़' दोस्त नहीं
किससे कहिए कि आओ सो जाएं

शब्दार्थ
<references/>