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"कुछ ग़में-जानां,कुछ ग़में-दौरां / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

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तेरे आने की महफ़िल ने जो कुछ आहट-सी पाई है,
 
तेरे आने की महफ़िल ने जो कुछ आहट-सी पाई है,
              हर इक ने साफ़ देखा शमअ की लौ थरथराई है.
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हर इक ने साफ़ देखा शमअ की लौ थरथराई है.
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तपाक और मुस्कराहट में भी आँसू थरथराते हैं,
 
तपाक और मुस्कराहट में भी आँसू थरथराते हैं,
              निशाते-दीद भी चमका हुआ दर्दे-जुदाई है.
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निशाते-दीद१ भी चमका हुआ दर्दे-जुदाई है.
बहुत चंचल है अरबाबे-हवस की उँगलियाँ लेकिन,
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              उरूसे-ज़िन्दगी की भी नक़ाबे-रूख उठाई है.
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बहुत चंचल है अरबाबे-हवस२ की उँगलियाँ लेकिन,
ये मौजों के थपेड़े,ये उभरना बहरे-हस्ती में,
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उरूसे-ज़िन्दगी३ की भी नक़ाबे-रूख४ उठाई है.
              हुबाबे-ज़िन्दगी ये क्या हवा सर में समाई है?
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सुकूते-बहरे-बर की खलवतों में खो गया हूँ जब,
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ये मौजों के थपेड़े,ये उभरना बहरे-हस्ती५ में,
              उन्हीं मौकों पे कानों में तेरी आवाज़ आई है.
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हुबाबे-ज़िन्दगी६ ये क्या हवा सर में समाई है?
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सुकूते-बहरे-बर७ की खलवतों८ में खो गया हूँ जब,
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उन्हीं मौकों पे कानों में तेरी आवाज़ आई है.
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बहुत-कुछ यूँ तो था दिल में,मगर लब सी लिए मैंने,
 
बहुत-कुछ यूँ तो था दिल में,मगर लब सी लिए मैंने,
              अगर सुन लो तो आज इक बात मेरे दिल में आई है.
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अगर सुन लो तो आज इक बात मेरे दिल में आई है.
मोहब्बत दुश्मनी में क़ायम है रश्क का जज्बा,
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              अजब रुसवाइयाँ हैं ये अजब ये जग-हँसाई है.
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मोहब्बत दुश्मनी में क़ायम है रश्क९ का जज्बा,
मुझे बीमो-रज़ा की बहस-लाहासिल में उलझाकर,
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अजब रुसवाइयाँ हैं ये अजब ये जग-हँसाई है.
              हयाते-बेकराँ डर-पर्दा क्या-क्या मुस्कराई है.
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मुझे बीमो-रज़ा१० की बहसे-लाहासिल११ में उलझाकर,
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हयाते-बेकराँ१२ दर-पर्दा क्या-क्या मुस्कराई है.
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हमीं ने मौत को आँखों में आँखे डालकर देखा,
 
हमीं ने मौत को आँखों में आँखे डालकर देखा,
              ये बेबाकी नज़र की ये मोहब्बत की ढिठाई है.
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ये बेबाकी नज़र की ये मोहब्बत की ढिठाई है.
मेरे अशआर के मफहूम भी हैं पूछते मुझसे  
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              बताता हूँ तो कह देते हैं ये तो खुद-सताई है.
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मेरे अशआर१३ के मफहूम१४ भी हैं पूछते मुझसे  
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बताता हूँ तो कह देते हैं ये तो खुद-सताई१५ है.
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हमारा झूठ इक चूमकार है बेदर्द दुनिया को,
 
हमारा झूठ इक चूमकार है बेदर्द दुनिया को,
              हमारे झूठ से बदतर जमाने की सचाई है.
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हमारे झूठ से बदतर जमाने की सचाई है.
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१. देखने की खुशी      २. लालच        ३. जीवन रूपी दुल्हन  ४. घूँघट    ५. जीवन-सागर
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६. जीवन रूपी बुलबुला    ७. धरती का मौन  ८. एकांत          ९. ईर्ष्या    १०. भय और ईश्वरेच्छा
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११. व्यर्थ की बहस      १२. अथाह जीवन  १३.शे'र            १४.अर्थ      १५.खुद की प्रशंसा
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22:40, 25 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

तेरे आने की महफ़िल ने जो कुछ आहट-सी पाई है,
हर इक ने साफ़ देखा शमअ की लौ थरथराई है.

तपाक और मुस्कराहट में भी आँसू थरथराते हैं,
निशाते-दीद१ भी चमका हुआ दर्दे-जुदाई है.

बहुत चंचल है अरबाबे-हवस२ की उँगलियाँ लेकिन,
उरूसे-ज़िन्दगी३ की भी नक़ाबे-रूख४ उठाई है.

ये मौजों के थपेड़े,ये उभरना बहरे-हस्ती५ में,
हुबाबे-ज़िन्दगी६ ये क्या हवा सर में समाई है?

सुकूते-बहरे-बर७ की खलवतों८ में खो गया हूँ जब,
उन्हीं मौकों पे कानों में तेरी आवाज़ आई है.

बहुत-कुछ यूँ तो था दिल में,मगर लब सी लिए मैंने,
अगर सुन लो तो आज इक बात मेरे दिल में आई है.

मोहब्बत दुश्मनी में क़ायम है रश्क९ का जज्बा,
अजब रुसवाइयाँ हैं ये अजब ये जग-हँसाई है.

मुझे बीमो-रज़ा१० की बहसे-लाहासिल११ में उलझाकर,
हयाते-बेकराँ१२ दर-पर्दा क्या-क्या मुस्कराई है.

हमीं ने मौत को आँखों में आँखे डालकर देखा,
ये बेबाकी नज़र की ये मोहब्बत की ढिठाई है.

मेरे अशआर१३ के मफहूम१४ भी हैं पूछते मुझसे
बताता हूँ तो कह देते हैं ये तो खुद-सताई१५ है.

हमारा झूठ इक चूमकार है बेदर्द दुनिया को,
हमारे झूठ से बदतर जमाने की सचाई है.


१. देखने की खुशी २. लालच ३. जीवन रूपी दुल्हन ४. घूँघट ५. जीवन-सागर
६. जीवन रूपी बुलबुला ७. धरती का मौन ८. एकांत ९. ईर्ष्या १०. भय और ईश्वरेच्छा
११. व्यर्थ की बहस १२. अथाह जीवन १३.शे'र १४.अर्थ १५.खुद की प्रशंसा