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"घुटन भरा है गाँव अब कहाँ चला जाये / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | गले में डालकर फंदा न क्यों मरा जाये | ||
+ | कुएँ, पोखर पड़े सूखे अकाल पानी का | ||
+ | ख़राब नल मुआ दो दिन से, क्या किया जाये | ||
+ | हमारे गाँव में कौआ भी अब नहीं आता | ||
+ | हमारी ख़्वाहिश है कोयल कहीं से आ जाये | ||
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+ | कट गये पेड़ नहीं आतीं हवाएँ ठंडी | ||
+ | ऐसी गर्मी में यहाँ किस तरह रहा जाये | ||
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+ | अब तो गाँवों में भी होती है सियासत जमकर | ||
+ | कहाँ सुकून मिलेगा जहाँ बसा जाये | ||
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+ | किसी की काटना गर्दन पड़े तो यह भी सही | ||
+ | किसी भी तरह से परधान बस बना जाये | ||
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+ | न वो हल-बैल, न पहले सी वो किसानी है | ||
+ | बदल चुका है गाँव कब का क्या कहा | ||
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+ | जिन्होंने गाँव को उड़ते विमान से देखा | ||
+ | उन्हें भी सच का आइना दिखा दिया जाये | ||
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15:59, 13 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण
घुटन भरा है गाँव अब कहाँ चला जाये
गले में डालकर फंदा न क्यों मरा जाये
कुएँ, पोखर पड़े सूखे अकाल पानी का
ख़राब नल मुआ दो दिन से, क्या किया जाये
हमारे गाँव में कौआ भी अब नहीं आता
हमारी ख़्वाहिश है कोयल कहीं से आ जाये
कट गये पेड़ नहीं आतीं हवाएँ ठंडी
ऐसी गर्मी में यहाँ किस तरह रहा जाये
अब तो गाँवों में भी होती है सियासत जमकर
कहाँ सुकून मिलेगा जहाँ बसा जाये
किसी की काटना गर्दन पड़े तो यह भी सही
किसी भी तरह से परधान बस बना जाये
न वो हल-बैल, न पहले सी वो किसानी है
बदल चुका है गाँव कब का क्या कहा
जिन्होंने गाँव को उड़ते विमान से देखा
उन्हें भी सच का आइना दिखा दिया जाये