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"बहुत कुछ तुम्हारे शहर से है ग़ायब / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | जिसे देखिये वो बड़ा आदमी है | ||
+ | मगर आदमीयत इधर से है गा़यब | ||
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13:13, 16 नवम्बर 2020 का अवतरण
बहुत कुछ तुम्हारे शहर से है ग़ायब
यहाँ तक कि पानी नज़र से है ग़ायब
किसी ने ग़रीबों की बस्ती उजाड़ी
जला घर हमारा ख़बर से है ग़ायब
फ़कीरों सुनो और संतों भी सुन लो
दुआ ही वो क्या जो असर से हो ग़ायब
इधर पाँव मेरे थके जा रहे हैं
उधर मेरा सामां सफ़र से है ग़ायब
बड़ी बात तूने ग़ज़ल में कही है
नहीं ध्यान रक्खा बहर से है ग़ायब
जिसे देखिये वो बड़ा आदमी है
मगर आदमीयत इधर से है गा़यब