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"ये कोई उत्सव मनाने की घड़ी / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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ये कोई उत्सव मनाने की घड़ी
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आग सीने की है जब ठंडी पड़ी
  
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सामने दुश्मन खड़ा ललकारता
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हाथ में मेरे लगी है हथकड़ी
  
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लोग कहते हैं कि वो जल्लाद है
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मेरी साँसों पर नज़र उसकी गड़ी
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कौन मानेगा कि है तालाब साफ
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एक मछली भी अगर उसमें सड़ी
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भूख से बेहाल पर साधन नहीं
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उसके घर चूल्हा जले किसको पड़ी
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खेत में जो तप रहे वो जानते
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जेठ की ये धूप है कितनी कड़ी
 
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14:17, 16 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण

ये कोई उत्सव मनाने की घड़ी
आग सीने की है जब ठंडी पड़ी

सामने दुश्मन खड़ा ललकारता
हाथ में मेरे लगी है हथकड़ी

लोग कहते हैं कि वो जल्लाद है
मेरी साँसों पर नज़र उसकी गड़ी

कौन मानेगा कि है तालाब साफ
एक मछली भी अगर उसमें सड़ी

भूख से बेहाल पर साधन नहीं
उसके घर चूल्हा जले किसको पड़ी
 
खेत में जो तप रहे वो जानते
जेठ की ये धूप है कितनी कड़ी