भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कुछ इश्क़ किया, कुछ काम किया / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) छो |
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | ||
}} | }} | ||
+ | <poem> | ||
+ | वो लोग बहुत ख़ुशक़िस्मत थे | ||
+ | जो इश्क़ को काम समझते थे | ||
+ | या काम से आशिक़ी करते थे | ||
+ | हम जीते जी मसरूफ़ रहे | ||
+ | कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया | ||
− | + | काम इश्क़ के आड़े आता रहा | |
− | + | और इश्क़ से काम उलझता रहा | |
− | + | फिर आख़िर तंग आकर हम ने | |
− | + | दोनों को अधूरा छोड़ दिया | |
− | + | ||
− | + | ||
− | काम इश्क़ के आड़े आता रहा | + | |
− | और इश्क़ से काम उलझता रहा | + | |
− | फिर आख़िर तंग आकर हम ने | + | |
− | दोनों को अधूरा छोड़ दिया | + | |
................................................................... | ................................................................... | ||
'''[[केही प्रेम गरेँ, केही कर्म गरेँ / फैज अहमद फैज / सुमन पोखरेल|यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्नलाई यहाँ क्लिक गर्नुहोस्]]''' | '''[[केही प्रेम गरेँ, केही कर्म गरेँ / फैज अहमद फैज / सुमन पोखरेल|यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्नलाई यहाँ क्लिक गर्नुहोस्]]''' | ||
</poem> | </poem> |
15:33, 27 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण
वो लोग बहुत ख़ुशक़िस्मत थे
जो इश्क़ को काम समझते थे
या काम से आशिक़ी करते थे
हम जीते जी मसरूफ़ रहे
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
काम इश्क़ के आड़े आता रहा
और इश्क़ से काम उलझता रहा
फिर आख़िर तंग आकर हम ने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया
...................................................................
यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्नलाई यहाँ क्लिक गर्नुहोस्