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"ललकार का स्वागत (मुक्तक) / शंकरलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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यहाँ हर हृदय का स्वागत, सदा होता हृदय से है।
मगर ललकार का स्वागत, सदा तलवार करती है।।
तुम्हें कर तो क्षमा देते; मगर बदला चुकाने को-
हमारे देश की धरती हमें लाचार करती है।।