भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मातृ-भू का ऋण (मुक्तक) / शंकरलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rahul1735mini (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंकरलाल द्विवेदी |संग्रह= }} {{KKCatMuktak}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:32, 1 दिसम्बर 2020 के समय का अवतरण
मातृ-भू का ऋण चुकाने के लिए।
दम्भ दुश्मन का झुकाने के लिए।
प्राण ले लो; पर विवश करना न तुम-
पाँव अब पीछे हटाने के लिए।।