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"मातृ-भू का ऋण (मुक्तक) / शंकरलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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19:32, 1 दिसम्बर 2020 के समय का अवतरण

मातृ-भू का ऋण चुकाने के लिए।
दम्भ दुश्मन का झुकाने के लिए।
प्राण ले लो; पर विवश करना न तुम-
पाँव अब पीछे हटाने के लिए।।