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बाँसुरी अष्टक / सुधा गुप्ता

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तूने अधर धरी
सुरों की धार बही
 
बाँस की पोरी
निकम्मी, खोखल में
बेसुरी, कोरी
तूने फूँक जो भरी
बन गई ‘बाँसुरी’
कोई न गुन
दौड़ पड़ गोपियाँ
उफनी है कालिन्दी
 
तेरा ही जादू
दूध पीना भूला है
गैया का छौना
चित्र-से मोर, शुक
कैसा ये किया टोना
गोपी का नेह