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मुश्किल समय / अनिता मंडा

1,312 bytes added, 19:00, 2 फ़रवरी 2021
<poem>
गोद में उठाया हुआ बच्चा
माँ के माथे से बिंदी उतारकर
सजाता है अपने माथे पर
भरता है किलकारी
चुपके से खोलकर
ड्रेसिंग टेबल की दराज
दोनों हाथों में भर-भर पहनता है चूड़ियाँ
माँ की चुन्नी आँखों पर डाल
खेली जाती है छुप्पम- छुपाई
रो देता है दिल खोलकर
चोट लगने पर
सबसे जताता है प्यार बिंदास
कोई पर्देदारी नहीं
नादान बचपन
बेख़बर है हर सत्ता से
दीवारें उठ रही हैं हर कहीं
हर तरफ़
बाज़ार इसे भी बाँट ही देगागुलाबी और नीले मेंसमाज के बनाए विशेषण पहनखो जाएगी इसकी सम्पूर्णताकितना कठिन है इस समय खिलते फूलों को सहेजना </poem>