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"एक दिन चुक जाएगी ही बात / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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बात है:   
 
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चुकती रहेगी   
 
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एक दिन चुक जाएगी ही—बात।  
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एक दिन चुक जाएगी ही —  बात ।  
 
जब चुक चले तब   
 
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उस विन्दु पर  <!--- विन्दु ही है इसे बिन्दु न करें, विन्दु का मतलब भी यही होता है --->  
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उस विन्दु पर !   < विन्दु ही है इसे बिन्दु न करें, विन्दु का मतलब भी यही होता है --->  
 
जो मैं बचूँ   
 
जो मैं बचूँ   
(मैं बचूँगा ही!)   
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(मैं बचूँगा ही !)   
उस को मैं कहूँ—  
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उस को मैं कहूँ —  
इस मोह में अब और कब तक रहूँ?     
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इस मोह में अब और कब तक रहूँ ?     
  
चुक रहा हूँ मैं।  
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चुक रहा हूँ मैं ।  
 
स्वयं जब चुक चलूँ   
 
स्वयं जब चुक चलूँ   
तब भी बच रहे जो बात—  
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तब भी बच रहे जो बात —  
(बात ही तो रहेगी!)   
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(बात ही तो रहेगी !)   
उसी को कहूँ:   
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उसी को कहूँ :   
यह सम्भावना—  
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यह सम्भावना —  
यह नियति—कवि की   
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यह नियति — कवि की   
सहूँ।  
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सहूँ ।  
उतना भर कहूँ,:   
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उतना भर कहूँ, :   
—इतना कर सकूँ   
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— इतना कर सकूँ   
 
जब तक चुकूँ!   
 
जब तक चुकूँ!   
 
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12:51, 1 मार्च 2021 के समय का अवतरण

बात है:
चुकती रहेगी
एक दिन चुक जाएगी ही — बात ।
जब चुक चले तब
उस विन्दु पर ! < विन्दु ही है इसे बिन्दु न करें, विन्दु का मतलब भी यही होता है --->
जो मैं बचूँ
(मैं बचूँगा ही !)
उस को मैं कहूँ —
इस मोह में अब और कब तक रहूँ ?

चुक रहा हूँ मैं ।
स्वयं जब चुक चलूँ
तब भी बच रहे जो बात —
(बात ही तो रहेगी !)
उसी को कहूँ :
यह सम्भावना —
यह नियति — कवि की
सहूँ ।
उतना भर कहूँ, :
— इतना कर सकूँ
जब तक चुकूँ!