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"एक दिन चुक जाएगी ही बात / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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बात है: | बात है: | ||
चुकती रहेगी | चुकती रहेगी | ||
− | एक दिन चुक जाएगी | + | एक दिन चुक जाएगी ही — बात । |
जब चुक चले तब | जब चुक चले तब | ||
− | उस विन्दु पर < | + | उस विन्दु पर ! < विन्दु ही है इसे बिन्दु न करें, विन्दु का मतलब भी यही होता है ---> |
जो मैं बचूँ | जो मैं बचूँ | ||
− | (मैं बचूँगा ही!) | + | (मैं बचूँगा ही !) |
− | उस को मैं | + | उस को मैं कहूँ — |
− | इस मोह में अब और कब तक रहूँ? | + | इस मोह में अब और कब तक रहूँ ? |
− | चुक रहा हूँ | + | चुक रहा हूँ मैं । |
स्वयं जब चुक चलूँ | स्वयं जब चुक चलूँ | ||
− | तब भी बच रहे जो | + | तब भी बच रहे जो बात — |
− | (बात ही तो रहेगी!) | + | (बात ही तो रहेगी !) |
− | उसी को कहूँ: | + | उसी को कहूँ : |
− | यह | + | यह सम्भावना — |
− | यह | + | यह नियति — कवि की |
− | + | सहूँ । | |
− | उतना भर कहूँ,: | + | उतना भर कहूँ, : |
− | + | — इतना कर सकूँ | |
जब तक चुकूँ! | जब तक चुकूँ! | ||
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12:51, 1 मार्च 2021 के समय का अवतरण
बात है:
चुकती रहेगी
एक दिन चुक जाएगी ही — बात ।
जब चुक चले तब
उस विन्दु पर ! < विन्दु ही है इसे बिन्दु न करें, विन्दु का मतलब भी यही होता है --->
जो मैं बचूँ
(मैं बचूँगा ही !)
उस को मैं कहूँ —
इस मोह में अब और कब तक रहूँ ?
चुक रहा हूँ मैं ।
स्वयं जब चुक चलूँ
तब भी बच रहे जो बात —
(बात ही तो रहेगी !)
उसी को कहूँ :
यह सम्भावना —
यह नियति — कवि की
सहूँ ।
उतना भर कहूँ, :
— इतना कर सकूँ
जब तक चुकूँ!