भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हम नहि आजु रहब अहि आँगन / विद्यापति" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=विद्यापति | |रचनाकार=विद्यापति | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
− | }} | + | }}{{KKVID|v=FiXLKMvSjZ4}} |
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
{{KKCatMaithiliRachna}} | {{KKCatMaithiliRachna}} |
16:01, 11 मार्च 2021 का अवतरण
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
हम नहि आजु रहब अहि आँगन
जं बुढ होइत जमाय, गे माई.
एक त बैरी भेल बिध बिधाता
दोसर धिया केर बाप।
तेसरे बैरी भेल नारद बाभन।
जे बुढ अनल जमाय। गे माइ॥
पहिलुक बाजन डमरू तोड़ब
दोसर तोड़ब रुण्डमाल। गे माइ॥
बड़द हाँकि बरिआत बैलायब
धियालय जायब पराय गे माइ।
धोती लोटा पोथी पतरा
सेहो सब लेबनि छिनाय। गे माइ॥
जँ किछु बजताह नारद बाभन
दाढ़ी धय लय घिसियाब, गे माइ।
भनइ विद्यापति सुनु हे मनाइनि
दृढ करू अपन गेआन। गे माइ॥
सुभ सुभ कय सिव गौरी बियाहु
गौरी हर एक समान, गे माइ॥