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"जा रहे हो, मगर, लौटना / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर

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जा रहे हो मगर लौटना
 
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एक दिन अपने घर लौटना
 
एक दिन अपने घर लौटना
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है असंभव इधर लौटना
 
है असंभव इधर लौटना
  
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पिंजरा खुलते ही पंछी उड़े
 
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मुक्त होना है ‘पर’ लौटना
 
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23:26, 21 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण

 
जा रहे हो मगर लौटना
एक दिन अपने घर लौटना

जीतना भी जरूरी नहीं
लौटना हार कर लौटना

मुझको जादू सरीखा लगा—
मौन शब्दों में स्वर लौटना

घर से भागी नदी का हुआ
स्वप्न में रात भर लौटना

उस शिविर में पहुँचने के बाद
है असंभव इधर लौटना

ये तो चिंताजनक है बहुत-
मन की बस्ती में डर लौटना

पिंजरा खुलते ही पंछी उड़े
मुक्त होना है ‘पर’ लौटना