"हाइकु / हरदीप कौर संधु / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक=कविता भट्ट |संग्रह=पहाड...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार= हरदीप कौर संधु |
|अनुवादक=कविता भट्ट | |अनुवादक=कविता भट्ट | ||
|संग्रह=पहाड़ी पर चंदा / कविता भट्ट | |संग्रह=पहाड़ी पर चंदा / कविता भट्ट | ||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
{{KKCatHaiku}} | {{KKCatHaiku}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | 1 | ||
+ | सावन-झड़ी | ||
+ | गुलगुले-मठरी | ||
+ | माँ की रसोई. | ||
+ | सौंणों सगर | ||
+ | गुलगुला मठरी | ||
+ | ब्वे का रूसाड़ा | ||
+ | 2 | ||
+ | कैमरा क्लिक | ||
+ | मुँह छुपाए अम्मा | ||
+ | ताई कहे न! | ||
+ | कैमरा क्लिक | ||
+ | मुक लुकौंदी ब्वे बी | ||
+ | बौडी बुल्दी ना | ||
+ | 3 | ||
+ | बादल छाए | ||
+ | दादी न चैन पाए | ||
+ | उपले ढके. | ||
+ | बादळ लग्याँ | ||
+ | दादी तैं नी च चैन | ||
+ | ग्वाँसा ढकणी | ||
+ | 4 | ||
+ | रात अँधेरी | ||
+ | दे रही है पहरा | ||
+ | बापू की खाँसी. | ||
+ | |||
+ | रात अन्ध्यारी | ||
+ | जग्वाळी कन्नी रौंदी | ||
+ | बुबाजी खाँसी | ||
+ | |||
+ | 5 | ||
+ | याद किशोरी | ||
+ | मन खिड़की खोल | ||
+ | करे कलोल। | ||
+ | |||
+ | याद पठोळी | ||
+ | मन खिड़की ख्वन्नू | ||
+ | कन्नू छेड़ सी | ||
+ | 6 | ||
+ | भूल न पाया, | ||
+ | जब-जब साँस ली; | ||
+ | तू याद आया। | ||
+ | |||
+ | भूलि नी सक्यूँ | ||
+ | जब-जब साँस ले | ||
+ | तू याद आएँ | ||
+ | 7 | ||
+ | वक्त ने भरे | ||
+ | तेरी याद के जख्म | ||
+ | फिर से हरे। | ||
+ | |||
+ | बग्तन भरी | ||
+ | तेरी खुद का घौ बी | ||
+ | फीर से हौरा | ||
+ | 8 | ||
+ | जन्मी बिटिया | ||
+ | खुशबू ही खुशबू, | ||
+ | आँगन खिला। | ||
+ | |||
+ | जल्मी जु नौंनी | ||
+ | खुसबो ई खुसबो | ||
+ | चौक खिली गी | ||
+ | 9 | ||
+ | तू मेरा सूर्य | ||
+ | घूमती जाऊँ ऐसे, | ||
+ | मैं तेरी धरा। | ||
+ | |||
+ | तु म्येरु सुर्ज | ||
+ | घुमणु इन रौलू | ||
+ | मैं तेरी पिर्थी | ||
+ | 10 | ||
+ | दर्द व प्रेम | ||
+ | मुझे जो तूने दिया | ||
+ | आँचल भरा। | ||
+ | |||
+ | पिड़ा र माया | ||
+ | मैं तैं जु तिन द्याई | ||
+ | पल्ला भोरी ग्ये | ||
+ | 11 | ||
+ | विश्वास-पाखी | ||
+ | ढूँढे हरी शाखाएँ | ||
+ | फैला भुजाएँ। | ||
+ | |||
+ | बिस्वास पंछी | ||
+ | खोजणु हौरा फाँगा | ||
+ | फैलै अंग्वाळ | ||
+ | 12 | ||
+ | छाईं घटाएँ | ||
+ | ज्यों सिर से फिसली | ||
+ | तेरी चूनर। | ||
+ | |||
+ | छै ग्ये बादळ | ||
+ | जु मुंड बटी रड़ी | ||
+ | तेरी य चुन्नी | ||
+ | -0- | ||
</poem> | </poem> |
20:18, 3 मई 2021 के समय का अवतरण
1
सावन-झड़ी
गुलगुले-मठरी
माँ की रसोई.
सौंणों सगर
गुलगुला मठरी
ब्वे का रूसाड़ा
2
कैमरा क्लिक
मुँह छुपाए अम्मा
ताई कहे न!
कैमरा क्लिक
मुक लुकौंदी ब्वे बी
बौडी बुल्दी ना
3
बादल छाए
दादी न चैन पाए
उपले ढके.
बादळ लग्याँ
दादी तैं नी च चैन
ग्वाँसा ढकणी
4
रात अँधेरी
दे रही है पहरा
बापू की खाँसी.
रात अन्ध्यारी
जग्वाळी कन्नी रौंदी
बुबाजी खाँसी
5
याद किशोरी
मन खिड़की खोल
करे कलोल।
याद पठोळी
मन खिड़की ख्वन्नू
कन्नू छेड़ सी
6
भूल न पाया,
जब-जब साँस ली;
तू याद आया।
भूलि नी सक्यूँ
जब-जब साँस ले
तू याद आएँ
7
वक्त ने भरे
तेरी याद के जख्म
फिर से हरे।
बग्तन भरी
तेरी खुद का घौ बी
फीर से हौरा
8
जन्मी बिटिया
खुशबू ही खुशबू,
आँगन खिला।
जल्मी जु नौंनी
खुसबो ई खुसबो
चौक खिली गी
9
तू मेरा सूर्य
घूमती जाऊँ ऐसे,
मैं तेरी धरा।
तु म्येरु सुर्ज
घुमणु इन रौलू
मैं तेरी पिर्थी
10
दर्द व प्रेम
मुझे जो तूने दिया
आँचल भरा।
पिड़ा र माया
मैं तैं जु तिन द्याई
पल्ला भोरी ग्ये
11
विश्वास-पाखी
ढूँढे हरी शाखाएँ
फैला भुजाएँ।
बिस्वास पंछी
खोजणु हौरा फाँगा
फैलै अंग्वाळ
12
छाईं घटाएँ
ज्यों सिर से फिसली
तेरी चूनर।
छै ग्ये बादळ
जु मुंड बटी रड़ी
तेरी य चुन्नी
-0-