भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घर के पास नदी होती थी / फूलचन्द गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फूलचन्द गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:09, 12 मई 2021 के समय का अवतरण
घर के पास नदी होती थी ।
जिसमें माँ कपड़े धोती थी ।
बच्चे को कनियाँ में लेकर,
बोझा मूड़ें पर ढोती थी ।
चूल्हे-चक्की से फुरसत पा,
खेतों में जड़हन बोती थी ।
अम्मा की यादों की खूँटी,
दादा का कुर्ता धोती थी ।
बटुली में अदहन रखकर माँ,
घण्टों तक छिप-छिप रोती थी ।
सबसे पहले सोकर उठती,
सब सो जाएँ, तब सोती थी ।
मैं मीज़ान समझ ना पाया,
क्या पाकर माँ सब खोती थी ।