भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आह मीठी-सी / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कविता भट्ट }} {{KKCatGadhwaliRachna}} <poem> होंठों प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

01:16, 20 मई 2021 का अवतरण

होंठों पर आई उड़कर,
लट जो उसने हटाई थी।

ठुड्डी पर उँगली रखकर
मैं धीरे से मुस्कराई थी।

आह मीठी- सी भरकर,
ली साँझ ने अँगड़ाई थी।

दिन सोया आँखें मूँदकर,
साँझ की चुनर लहराई थी।

माँगी तारों को तककर,
प्रार्थना वह मनचाही थी।

-0-