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"आह मीठी-सी / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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01:16, 20 मई 2021 का अवतरण
होंठों पर आई उड़कर,
लट जो उसने हटाई थी।
ठुड्डी पर उँगली रखकर
मैं धीरे से मुस्कराई थी।
आह मीठी- सी भरकर,
ली साँझ ने अँगड़ाई थी।
दिन सोया आँखें मूँदकर,
साँझ की चुनर लहराई थी।
माँगी तारों को तककर,
प्रार्थना वह मनचाही थी।
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