भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उसे आवाज दे रही / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

02:02, 20 मई 2021 के समय का अवतरण

23
दबी चिंगारी है; फिर भी उबाल आता है।
कैद मैना को आसमाँ का ख़्याल आता है।

सिलसिला ऊँची उड़ानों का यूँ तो उसकी;
जाने क्यों फिर घरौंदे का सवाल आता है।

नोंचे 'पर' उसके अंधेरे ने बेरहमी से बड़ी;
देख सूरज फिर उड़ने का मलाल आता है।

दोनों आँखों में वो तो दो 'ब्रह्माण्ड' रखती है;
उसकी राहों में मगर जग-जंजाल आता है।

उसे आवाज दे रही- अब नभ की नीलिमा;
जाने 'कविता' अब क्या चक्रचाल आता है।