भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नाविक ’विद्रोहियों’ पर बमबारी : बम्बई १९४६ / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:46, 4 अक्टूबर 2021 का अवतरण
अल्जीरियाई वीरों को समर्पित, 1961
लगी हो आग जंगल में कहीं जैसे,
हमारे दिल सुलगते हैं ।
हमारी शाम की बातें
लिए होती हैं अक्सर ज़लज़ले महशर के; और जब
भूख लगती है हमें तब इंक़लाब आता है ।