भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चुपके से / अदिति वसुराय / लिपिका साहा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अदिति वसुराय |अनुवादक=लिपिका साह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:18, 9 अक्टूबर 2021 के समय का अवतरण

क्या लिखूँ चुपके से ?
या फिर रुठकर हर रोज़ मरती रहूँ
पुराने पोखर में ?

क्या कह दोगे तुम ?
तीर तुम्हारा निशाने पर नहीं बैठता, राजमार्ग पर जोकर नहीं
सुनसान पुस्तक-मेला
क्या है तुम लोगों के पास ?

मैं सदा से देवताओं की प्रिय सखी रही
पर हर रोज़ मैं फ़सल उगाने में
होती हूँ नाकामयाब ।

क्या है छिपा ?
जो शहनाई बजी थी — जल चुकी है ।
बनारसी साड़ी सड़ गई है कबकी ।
दूँ भी क्या मैं तुम्हें ?

परमेश्वर के गेह से ला पाई हूँ
यह मामूली जिस्म
ग्रहण करोगे ?

मूल बांगला से अनुवाद : लिपिका साहा