"धुआं गर उठता है दिल से कि जां से उठने दो / निर्मल 'नदीम'" के अवतरणों में अंतर
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तुम अपने सर पे ये इल्ज़ाम क्यों उठाते हो, | तुम अपने सर पे ये इल्ज़ाम क्यों उठाते हो, | ||
वफ़ा का मुद्दआ मेरी ज़बां से उठने दो। | वफ़ा का मुद्दआ मेरी ज़बां से उठने दो। |
14:48, 25 नवम्बर 2021 के समय का अवतरण
धुआं गर उठता है दिल से कि जां से उठने दो,
मुझे न रोको हसीनो, जहां से उठने दो।
किसी की ख़ाक ए कफ़ ए पा है कायनात मेरी,
सितारो, छोड़ो मुझे आसमां से उठने दो।
तुम अपने सर पे ये इल्ज़ाम क्यों उठाते हो,
वफ़ा का मुद्दआ मेरी ज़बां से उठने दो।
तुम्हारे जाने की तदबीर भी निकालूंगा,
चराग़ बुझते हुए आशियाँ से उठने दो।
चटान ग़म की जो दिल पर रखी है सदियों से,
कभी तो दर्द के आब ए रवां से उठने दो।
मेरे कफ़न में भी इक दाग़ तुम लगा देना,
मेरी ये लाश मगर आस्ताँ से उठने दो।
तुम्हारे तीर को मिल जाएगी जगह कोई,
बस एक आह दिल ए मेहरबां से उठने दो।
कहाँ का चांद, क्या सूरज, कहाँ के सय्यारे,
मुझे फ़रेब की इस कहकशां से उठने दो।
नदीम वस्ल की सूरत निकाल ही लेगा,
बदन को पहले ज़रा दरमियां से उठने दो।