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"माना मुझे नसीब तेरा डर नहीं हुआ / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'" के अवतरणों में अंतर
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माना मुझे नसीब तेरा दर नहीं हुआ | माना मुझे नसीब तेरा दर नहीं हुआ | ||
मेरा जुनूने इश्क़ भी कमतर नहीं हुआ | मेरा जुनूने इश्क़ भी कमतर नहीं हुआ | ||
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नदियाँ नज़र बचाके सब आपस में मिल गईं | नदियाँ नज़र बचाके सब आपस में मिल गईं | ||
कमज़ोर फिर भी कोई समुन्दर नहीं हुआ | कमज़ोर फिर भी कोई समुन्दर नहीं हुआ | ||
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भटका तो हूँ तलाश में, मंज़िल की उम्र भर | भटका तो हूँ तलाश में, मंज़िल की उम्र भर | ||
लेकिन कमाल ये है कि बेघर नहीं हुआ | लेकिन कमाल ये है कि बेघर नहीं हुआ | ||
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मलबे तले दबी हुईं लाशों को देखकर | मलबे तले दबी हुईं लाशों को देखकर | ||
हैरत की बात ये है, मैं पत्थर नहीं हुआ | हैरत की बात ये है, मैं पत्थर नहीं हुआ | ||
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घर फूँकने की अब तो, रिवायत है भीड़ की | घर फूँकने की अब तो, रिवायत है भीड़ की | ||
अच्छा हुआ जो ज़द में मेरा घर नहीं हुआ | अच्छा हुआ जो ज़द में मेरा घर नहीं हुआ | ||
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मुस्तैद आदमी के पसीने से ये दयार | मुस्तैद आदमी के पसीने से ये दयार | ||
ज़रख़ेज हो न हो कभी बंजर नहीं हुआ | ज़रख़ेज हो न हो कभी बंजर नहीं हुआ | ||
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जब से हुआ ख़िलाफ़ हवेली के मैं ‘शलभ‘ | जब से हुआ ख़िलाफ़ हवेली के मैं ‘शलभ‘ | ||
सर को नसीब कोई भी छप्पर नहीं हुआ | सर को नसीब कोई भी छप्पर नहीं हुआ | ||
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04:50, 27 नवम्बर 2021 के समय का अवतरण
माना मुझे नसीब तेरा दर नहीं हुआ
मेरा जुनूने इश्क़ भी कमतर नहीं हुआ
नदियाँ नज़र बचाके सब आपस में मिल गईं
कमज़ोर फिर भी कोई समुन्दर नहीं हुआ
भटका तो हूँ तलाश में, मंज़िल की उम्र भर
लेकिन कमाल ये है कि बेघर नहीं हुआ
मलबे तले दबी हुईं लाशों को देखकर
हैरत की बात ये है, मैं पत्थर नहीं हुआ
घर फूँकने की अब तो, रिवायत है भीड़ की
अच्छा हुआ जो ज़द में मेरा घर नहीं हुआ
मुस्तैद आदमी के पसीने से ये दयार
ज़रख़ेज हो न हो कभी बंजर नहीं हुआ
जब से हुआ ख़िलाफ़ हवेली के मैं ‘शलभ‘
सर को नसीब कोई भी छप्पर नहीं हुआ