भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लूर / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:12, 28 नवम्बर 2021 के समय का अवतरण
बढ़ियां से राखॉे सब बसता
मन कॅ राखो हरदम हँसता
लूर जरूरी आरो ससता
बायां तरफें चलिहोॅ रसता।
रूक्खों-सुक्खों सब खैने जा
बढ़िया सॅे सब बतियैने जा
मिली-जुली रहला से बाबू
भारी काम लगै छै ससता,
बढ़ियां से राखॉे सब बसता।