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"ये किन ख़्वाबों की ज़द में आ गया हूँ / सुरेश कुमार" के अवतरणों में अंतर
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ये किन ख़्वाबों की ज़द में आ गया हूँ
मैं शायद नींद में चलने लगा हूँ
अकेलापन ही सब का दुख हो जैसे
मैं ख़ुशबू हूँ तो फूलों से जुदा हूँ
वो यूँ अपनी हथेली देखता है
मैं उसके हाथ पर जैसे लिखा हूँ
वही अब ढूँढने निकला है मुझको
मैं जिसके ध्यान में खोया हुआ हूँ
अजब रिश्ता किसी से जुड़ गया है
अलग ढंग से किसी का हो चुका हूँ