भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"और मैं सोचा करता अक्सर / बैर्तोल्त ब्रेष्त / सुरेश सलिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= बैर्तोल्त ब्रेष्त |अनुवादक=सुरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:43, 16 दिसम्बर 2021 के समय का अवतरण

और मैं सोचा करता अक्सर :
बहुत आसान शब्द काफ़ी होंगे ।

जब मैं कहूँ —
कैसी हैं चीज़ें
हरेक का दिल चिन्दी-चिन्दी होगा ।
कि तुम रसातल में धँस जाओगेअँधेरेअगर पैर जमाए खड़े न रहे —

देख ही रहे हो यह तुम !

1956 : सम्भवतः ब्रेष्त की अन्तिम कविता

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल