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सुख-साज / कविता भट्ट

24 bytes added, 04:56, 31 दिसम्बर 2021
<poem>
पक्षियों के पर रँगीले
रेशम की के बन्धन सजीले
हरीतिमा डाली निराली
नव किसलय, अमृत प्याली
रोक लेंगे क्या ये सब मुझे?
अभी -अभी बीते क्षण मेंऔर मृदु मृदाकण में
जगी थी एक स्फूर्ति
सजी थी एक मूर्ति