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"जब मर जाऊँ मैं, मेरे प्रियतम / क्रिस्टीना रोजेटी / सुधा तिवारी" के अवतरणों में अंतर

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जब मर जाऊँ मैं, मेरे प्रियतम
 
जब मर जाऊँ मैं, मेरे प्रियतम
गाना नहीं कोई शोक गीत मेरे लिए;
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मत गाना कोई शोकगीत मेरे लिए;
रोपना नहीं कोई गुलाब मेरे सिरहाने,
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मत रोपना कोई गुलाब मेरे सिरहाने,
न ही सायादार सरो की गाछ :
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और न ही सायादार सरो की गाछ :
बन आना हरी घास मेरे ऊपर
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उगना बनकर हरी घास मेरे ऊपर
बारिशों और ओस की बूंदों से तर;
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बारिशों और ओस की बून्दों से तर;
और अगर चाहो, याद करना
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और अगर चाहो तो याद करना
और अगर चाहो, भूल जाना।
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और चाहो तो भूल जाना।
  
मैं नहीं देखूँगी छाँह को,
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मैं नहीं देखूँगी छाँह,
मैं नहीं महसूस करूँगी बारिश को;
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मैं नहीं छू पाऊँगी बारिशें;
मैं नहीं सुनूँगी बुलबुल को
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मैं नहीं सुनूँगी गाते हुए
गाते हुए अगरचे वह रंजीदा हो :
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बुलबुल अगरचे वह रंजीदा ही हो :
 
और ख़्वाब बुनते हुए उस साँझ के पार
 
और ख़्वाब बुनते हुए उस साँझ के पार
 
जो न तो उगती है न बुझती है,
 
जो न तो उगती है न बुझती है,
मुमकिन है मैं याद करूँ,
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मुमकिन है मैं याद करूँ तुम्हें,
और मुमकिन है भूल जाऊँ ।
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और मुमकिन है कि भूल भी जाऊँ ।
  
(18 वर्ष की उम्र में लिखी गई क्रिस्टीना की कविता
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(18 वर्ष की उम्र में लिखी गई कविता
  
 
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधा तिवारी'''
 
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधा तिवारी'''

15:50, 18 जनवरी 2022 के समय का अवतरण

जब मर जाऊँ मैं, मेरे प्रियतम
मत गाना कोई शोकगीत मेरे लिए;
मत रोपना कोई गुलाब मेरे सिरहाने,
और न ही सायादार सरो की गाछ :
उगना बनकर हरी घास मेरे ऊपर
बारिशों और ओस की बून्दों से तर;
और अगर चाहो तो याद करना
और चाहो तो भूल जाना।

मैं नहीं देखूँगी छाँह,
मैं नहीं छू पाऊँगी बारिशें;
मैं नहीं सुनूँगी गाते हुए
बुलबुल अगरचे वह रंजीदा ही हो :
और ख़्वाब बुनते हुए उस साँझ के पार
जो न तो उगती है न बुझती है,
मुमकिन है मैं याद करूँ तुम्हें,
और मुमकिन है कि भूल भी जाऊँ ।

(18 वर्ष की उम्र में लिखी गई कविता

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधा तिवारी

लीजिए, अब यही कविता मूल भाषा में पढ़िए
     When I am dead, my dearest
          Christina Rossetti

When I am dead, my dearest,
Sing no sad songs for me;
Plant thou no roses at my head,
Nor shady cypress tree:
Be the green grass above me
With showers and dewdrops wet;
And if thou wilt, remember,
And if thou wilt, forget.

I shall not see the shadows,
I shall not feel the rain;
I shall not hear the nightingale
Sing on, as if in pain:
And dreaming through the twilight
That doth not rise nor set,
Haply I may remember,
And haply may forget.