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चौवन साल महाँ जगत घडोलियो।
सबले जानुन भनी दोहा खोलियो ॥
बयालीस जङ्गीका साथ रहन्छु ।
पल्टनका हवाल थोडा धेर कहन्छु ॥६३॥