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"तुहिन-हिम नभ से अचानक धरा पर झड़ने लगा / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’" के अवतरणों में अंतर
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13:34, 30 जनवरी 2022 के समय का अवतरण
चल रहीं शीतल हवाएँ, धुँधलका बढ़ने लगा ।
कुहासे का आवरण, आकाश पर चढ़ने लगा ।।
हाथ ठिठुरे-पाँव ठिठुरे, काँपता आँगन-सदन,
कोट,चस्टर और कम्बल से, ढके सबके बदन,
आग का गोला गगन में, पस्त सा पड़ने लगा ।
चल रहीं शीतल हवाएँ, धुँधलका बढ़ने लगा ।।
सर्द मौसम को समेटे, जागता परिवेश है,
श्वेत चादर को लपेटे, झाँकता राकेश है,
तुहिन-हिम नभ से अचानक, धरा पर झड़ने लगा ।
चल रहीं शीतल हवाएँ, धुँधलका बढ़ने लगा ।।
आगमन ऋतुराज का, लगता बहुत ही दूर है,
अभी तो हेमन्त यौवन से, भरा भरपूर है,
मकर का सूरज, नए सन्देश कुछ गढ़ने लगा ।
चल रहीं शीतल हवाएँ, धुँधलका बढ़ने लगा ।।