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"मुस्कान लाना चाहता हूँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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जिसके पथ में फूल खिलाए | जिसके पथ में फूल खिलाए | ||
− | उसने ही घर रोज़ | + | उसने ही घर रोज़ जलाए। |
हम क्या करते छाले धोते | हम क्या करते छाले धोते | ||
− | घोर अँधेरों में छुप रोते | + | घोर अँधेरों में छुप रोते । |
जिसको समझा ये मेरे हैं | जिसको समझा ये मेरे हैं | ||
− | विषबीज सदा वे ही बोते | + | विषबीज सदा वे ही बोते । |
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+ | माना मिलने की आस नहीं | ||
+ | फिर भी मन हुआ निरास नहीं । | ||
+ | साँझ हुई मुझे गीत मिला | ||
+ | गीतों में मन का मीत मिले॥ | ||
+ | कब मीत बसा आ साँसों में | ||
+ | हो सका मुझे आभास नहीं। | ||
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08:29, 21 मई 2022 के समय का अवतरण
1
रोज़ जीने की हिम्मत जुटाता हूँ।
खड़ा होते ही फिर चोट खाता हूँ।
2
हज़ार बार मारते वे तो मुझको
आप हैं कि मुझे मरने नहीं देते।
3
तुम्हारे अधरों पर मैं
मुस्कान लाना चाहता हूँ
मैं इस दुनिया में
बार-बार आना चाहता हूँ।
4
जिसके पथ में फूल खिलाए
उसने ही घर रोज़ जलाए।
हम क्या करते छाले धोते
घोर अँधेरों में छुप रोते ।
जिसको समझा ये मेरे हैं
विषबीज सदा वे ही बोते ।
5
माना मिलने की आस नहीं
फिर भी मन हुआ निरास नहीं ।
साँझ हुई मुझे गीत मिला
गीतों में मन का मीत मिले॥
कब मीत बसा आ साँसों में
हो सका मुझे आभास नहीं।