भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
वह हमारी प्रेम कहानी की कब्र पर कफ़न बन छा गई
मैं सिरे जोड़ने और गांगाँ बांधने बाँधने में, चूकती रही थी सदा
मेरा अपराध सिर्फ प्रेम था, जिसकी मिली फिर सज़ा