भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बर्लिन की दीवार / 2 / हरबिन्दर सिंह गिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:17, 18 जून 2022 के समय का अवतरण

कई सालों से मस्तिष्क में
एक भाव उभर रहा था
कुछ पंक्तियाँ लिख सकूँ
और बता सकूँ, जीवनी पत्थर की,
कि उनका अपना ही एक व्यक्तित्व है
और यह उतना ही ठोस है
जितना की उसका अपना आवरण।

उसके कण-कण में
व्यक्तित्व की एक छाप छुपी है
जिसे अगर मानव समझ सके
तो अपने जीवन का भविष्य
एक ऐसी मजबूत नींव पर
खड़ा कर सकेगा
जिस पर मानवता का आने वाला हर कल
अपने को उतना ही सुरक्षित पायेगा
जितना कि पत्थर का
अपने का स्वयं का अस्तित्व है।