"बर्लिन की दीवार / 6 / हरबिन्दर सिंह गिल" के अवतरणों में अंतर
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पत्थर निर्जीव नहीं है
इनमें प्यार करने वाले
दिलों की धड़कने भी होती हैं।
यदि ऐसा न होता
ताजमहल इतना जीवांत न होता
ऐसा लगता है जैसे वो कब्र
आज भी सदियों बाद
दो प्रेमियों के रूहों की
जीती-जागती कहानी है।
ये संगमरमर के पत्थरों से बनी
खूबसूरत दीवारें ही नहीं हैं
जिसने ताजमहल को एक इमारत का
प्रारूप देकर इतिहास में निखारा है।
अपितु ये दो बिछड़े प्रेमियों के
विरह में गिरे आंसुओं से
बने मोतियों की चमक है
जिसने पत्थरों को चाँद का मुखड़ा दिया है।
यदि ऐसा न होता
क्योंकर हर अमीर आदमी
अपनी पत्नी की याद में
ताजमहलों की कतारें न लगा देता।
तभी तो बर्लिन दीवार के
इन ढ़हते पत्थरों के टुकड़ों में
हम देख पा रहे हैं
खुशी के आंसुओं की बाढ़
जो आजतक होते रहे थे जमा दिलों में
और बनकर बांध खड़ी थी यह दीवार
ताकि न हो सके मिलन पूर्व और पश्चिम का।