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"बर्लिन की दीवार / 7 / हरबिन्दर सिंह गिल" के अवतरणों में अंतर
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पत्थर निर्जीव नहीं हैं
ये प्रेरणा का स्त्रोत भी है।
यदि ऐसा न होता
तो चौराहों पर लगी मूर्तियाँ
या स्तंभ या बने स्मारक
पूजनीय और अराधनीय न होते।
उनमें लगे पत्थर ही तो
दर्शाते हैं मानव को
जीवन राह चलना।
कहीं जीवन के चौराहों पर आकर
वह पथ भ्रष्ट न हो जाए
याद दिलाते हैं मानव को
कि वह पड़े इन पत्थरों के चौराहों पर
उभरती लकीरों को
जिसमें छुपी होती है प्रेरणा
महापुरुषों के जीवनी की।
तभी तो बर्लिन दीवार के
ये ढ़हते टुकड़े पत्थरों के
बनकर रह गये हैं
अनंत स्त्रोत प्रेरणा का,
जिससे मानवता आजतक वंचित है
क्योंकि उसने असंख्य
बनती दीवारों को तो देखा था
परंतु दीवार ढाहकर
दो घरों को एक होते नहीं देखा था।