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"बर्लिन की दीवार / 19 / हरबिन्दर सिंह गिल" के अवतरणों में अंतर
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पत्थर निर्जीव नहीं है
ये कहर भी डालते हैं।
यदि ऐसा न होता
भूवाल के एक झटके से
शहर के शहर
जो पत्थरों के बने होते हैं
मिट्टी के ढेर बनकर
न रह जाते।
और न मच जाती
कराह ही कराह
चारों तरफ मलबों में दबे
आदमियों की
जो पत्थरों की चोटों से
अधमरे पड़े हैं।
तभी तो बर्लिन दीवार के
ये ढ़हते टुकड़े पत्थरों के
ले रहे हैं सांस चैन की
कि मानवता
बच गई है
एक बहुत बड़े कहर से
जो होना था पैदा
पूर्व और पश्चिम के
के टकराव से।