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"बर्लिन की दीवार / 21 / हरबिन्दर सिंह गिल" के अवतरणों में अंतर
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पत्थर निर्जीव नहीं हैं।
वे भविष्य वाणी भी करते हैं।
यदि ऐसा न होता
बढ़ती जनसंख्या का
मानव को बोध न हो पाता
क्योंकि बढ़ते महानगरों
के आकार ने
चिंता में डाल दिया है
आने वाले हर कल को
कि रोक दो
इन पत्थरों का प्रयोग
नित नये घर बनाने के लिये।
और क्यों न
एक ही घर में
एक ही छत के नीचे
अपने एक बच्चे के साथ
जीने मरने की आदत डाल लें।
-सवाल पत्थर की कमी का नहीं
कि घर और नहीं बन सकते
मगर सवाल है
उस छत के नीचे रहने वालों को
दो वक्त की रोटी देने का।
तभी तो बर्लिन दीवार के
ये ढ़हते टुकड़े पत्थरों के
कर रहे हैं भविष्य वाणी
जैसे नित नये
घर बनाना उचित नहीं
वैसे ही
नये देश बनाना हितकर नहीं।