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पत्थर निर्जीव नहीं है
ये कहते हैं कहानी भी।
यदि ऐसा न होता
पुराने जमाने में राजा
किलों की दीवारें
इतनी मजबूत न बनाते
क्योंकि उसमें
उनकी हार-जीत से भी ज्यादा
एक व्यक्तिगत अहं छुपा था
कि वे छोड़ जाना चाहते थे
अपने पीछे कहानी राजवंश की,
इन किले की
दीवारों के रूप में।
और जितने बड़े हो सकते थे
ये किले आकार में
उतनी ही महान समझते थे
शान अपने राजवंश की।
तभी तो बर्लिन दीवार के
ये ढ़हते टुकड़े पत्थरों के
चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं
कभी न देना मजबूती
उन महलों की दीवारों को
जिसमें शासन कर रहे हों
निर्दयी हिटलर जैसे जनरल।