"चन्दना / सुशील द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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(बुद्ध से विकर्षण चन्दना को जैन-भिक्षुणी बना देता है)
(दृश्य -एक)
किलन्हाई के दक्षिणी घाट पर
बारिश से
भीगी चन्दना
अपनी सफेद धोती के उर्ध्व भाग को
हवा में झटकते हुए
दूसरे घाट पर
सद्य:स्नात बुद्ध को देखती है
जैसे सीया ने राम को
जैसे चाँदनी ने चकोर को
जैसे मैंने तुम्हें पहली बार देखा है
(दृश्य-दो)
वृद्ध चाँदनी में लिपटे शिशु रवि की तरह
किलन्हाई की जलधारा में
सद्य:स्नात बुद्ध
दीपदान करते हुए जाप कर रहे हैं
जैसे अपने अन्तर्मन में किसी को आमंत्रण दिया हो
(दृश्य-तीन)
कौशाम्बी के अंतिम छोर तक
फैले, फूले कास, कुश, सरपत, गारण
तुलसी, धान-मंजरी
भंवरों और तितलियों का केलि-रव
किलन्हाई से शशि- डाह करने के लिए पर्याप्त है
(दृश्य- चार)
चंदना
धान के बीचोबीच मेड़ पर
गिरती,सम्भलती
सरपट नंगे पाँव भागती है
जैसे सद्य:स्नात बुद्ध ने उसे छूना चाहा हो
(दृश्य-पांच)
किलन्हाई के दक्षिणी तट पर
धान- मंजरियों से
भीगी, भागती चंदना
बुद्ध के ऊपर
कभी कास, कभी सरपत के फूल फेंक रही है
जैसे उनसे बचने का जतन कर रही हो
(दृश्य- छः)
नदी के बीचोबीच
खड़ी,सिहरती,अनुरक्त चन्दना को
पूर्वा ने छुआ
जैसे उसे बुद्ध ने छुआ
जैसे चकोर ने शशि को
जैसे तुमने मुझे...
(दृश्य - सात)
बुद्ध
एक नहीं दो बार आये कौशाम्बी
दो बार मिले चन्दना से
दो बार आँखें अनयन हुईं
( दृश्य - आठ)
दूसरी बार जाने के बाद
बुद्ध फिर कौशाम्बी नहीं लौटे
जैसे जाना उनके लिए महज क्रिया हो
चन्दना के लिए - गायब हुई आत्मा
किसी का जाना
गायब हो जाने से ज्यादा दुखदाई नहीं होता
(दृश्य - नौ)
जीवन आसमान सा बड़ा कैनवास है
उसमें स्मृतियाँ मेघों की तरह आती हैं,
रंग बदलती हैं, मिट जाती हैं
इस बार महावीर कौशाम्बी आये
चन्दना से मिले
किन्तु बुद्ध की तरह लौटे नहीं...