भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रंग-रार / सुशील द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशील द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:29, 22 जून 2022 के समय का अवतरण

कितना मुश्किल होता है
मजदूरों के जीवन पर बोलना
और लिखना -
जैसे अपनी आत्मा के
किसी हिस्से से अर्क़ उतार लेना।

जैसे अपने कलेजे को काटना
किसी जंग खाए चौपर से
और फिर देर तक उसे
किसी कथरी-सा सिलना।

जैसे भट्ठों की दुनिया में
खुद वापस लौट जाना
और ईंटों को पाथना देर तक।

जैसे खच्चरों को हांकना
लू उगलती गर्मी में
या अंगारे- से भट्ठे में
ईंटों को रख आना सुभीते ।

मजदूरों पर लिखना -
जैसे भोर भिनसार से चौराहे पर
प्रतीक्षा करना किसी काम की
या देर रात लौट आना खाली हाथ ।

मजदूरों पर लिखना -
जैसे मालिकों की गाली सुनना हर रोज
जैसे बीमार पड़ना
और खांसते, हांफते, तड़पते मर जाना।

मजदूरों पर लिखना -
जैसे उसके जीवन,
उसके रंग-रार को पी लेना घूंट-घूंट।