भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सच कहूँ तो चुप हूँ! / प्रदीप त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:47, 22 जून 2022 के समय का अवतरण

सब के सब...
मिले हुए हैं
नाटक के भी भीतर
एक और नाटक खेला जा रहा है

हमसब ...
एक साथ छले जा रहे हैं
क्रान्ति और बहिष्कार के
छद्मी आडंबरों के तलवों तले

अभिव्यक्ति के तमाम खतरे उठाते हुए भी
मैं आज नि:शब्द हूँ
सच कहूँ तो
चुप हूँ
कारण यह.
कि मेरे सचके भीतर भी एक और अदना सा सच है
कि
मैं बहुत कायर हूँ।